भारतीय लोकनाट्य
मनुष्य यह विकसनशील प्राणी है । प्राचीन काल से
ही मनुष्य ने हर्ष, आनंद, दुःख व्यक्त करने के लिए अनेकानेक भावमुद्रा, नृत्य, नाट्य, गीत, इनका आधार लिया
है। यह गीत, नृत्य, नाट्य, आज भारत के अलग-अलग प्रांतों में अपनी प्रादेशिक विशेषता रखे हुए विकसित रूप
में देखने को मिलते हैं।
लोक नाट्य क्या है ? लोकनाट्य किसे कहते हैं ? लोकनाट्य की परिभाषा
तो इस लोकनाट्य का तात्पर्य उस रूप से है जो परंपरा से अपने अपने क्षेत्र के जनसमुदाय के मनोरंजन
का साधन रहा हो | प्रयोगात्म
लोककलांओंकि अथवा जिसे लोकनाट्य कहा जाता है उस लोकनाट्य का अर्थ, लोकनाट्य की परिभाषा करते हुए
‘Folk lore and Folk life’ इस ग्रंथ में रिचर्ड डॉर्सन कहते है - Drama of any sort calls for the creation of a play world by the players,
generally through the use of conventional symbolic objects masks, costumes, a
special area for playing and conventional stylized actions याने 'लोक नाटक में आम तौर पर पारंपरिक प्रतीकात्मक वस्तुओं के उपयोग के माध्यम से
विभिन्न मुखौटे, वेशभूषा, प्रयोगों के विशिष्ट रंगमंच, एक विशेष क्षेत्र
और पारंपरिक शैलीगत कृत्यों की विशेषता होती है।
लोकनाट्य याने नाट्य का वह रूप जो अपने-अपने
क्षेत्र की लोकधर्मी रुढियों, परंपराओं का अनुकरण करके लोकमानस द्वारा अभिव्यक्त
होता है और लोकमानस को आह्लादित, उल्हासित एवं अनुप्राणित करता है |
भारत के अलग-अलग प्रांतों में अलग-अलग लोकनाट्य प्रचलित है जो कि भक्ति प्रधान, रंजन प्रधान, तथा विधि नाट्य है । हर एक प्रांत में अलग-अलग लोकनाट्य प्रचलित है इनमें से जो प्रमुख और प्रसिद्ध लोकनाट्य है उनके बारे में हम जानकारी लेंगे । सबसे पहले हम भारतीय लोकनाट्य के सन्दर्भ में लोकनाट्य कितने प्रकार के होते हैं ? यह जानेंगे |
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भारतीय लोकनाट्य |
लोकनाट्य के प्रकार
भारतीय लोकनाट्य इस ग्रन्थ
में डॉ. वशिष्ठ नारायण त्रिपाठीजी ने लोकनाट्यों को तीन विभागों में विभाजीत किया
है |
धार्मिक लीला रूप : रामलीला एव
रासलीला
धार्मिक एवं मंदिर आधारित लोकनाट्य : अंकिया नाट- (आसाम), यात्रा - (उड़ीसा,
पच्छिम बंगाल ), कुडियाट्टम- (केरल), यक्षगान - (कर्नाटक), भागवतमेल / भागकलापम
(कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु), कुचिपुड़ी - (कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु),
दशावतार – ( महाराष्ट्र )
लौकिक लोकप्रिय लोकनाट्य : ख्याल-लावणी - (उत्तर भारत ), माच – (मध्यप्रदेश,
राजस्थान), तमाशा (महाराष्ट्र), भवाई (गुजरात, राजस्थान), नौटंकी (उत्तरप्रदेश),
स्वांग (महाराष्ट्र, राजस्थान, गुजरात), बिदेसिया (बिहार), नाचा (छत्तीसगढ़), भांड
(राजस्थान), रम्मत (राजस्थान), भांड पथेर (जम्मू कश्मीर)
इसके अलावा लोकनाट्यों को ऐसे भी वर्गीकृत किया जा सकता है –
क)
नृत्य-प्रधान लोकनाट्य
ख)
संगीत-प्रधान लोकनाट्य
ग)
स्वांग-प्रधान लोकनाट्य
भारतीय लोकनाट्यों के कुछ उदाहरन
1. रामलीला
रामायण और महाभारत इन दो महाकाव्यों ने
भारतीय संस्कृति और कला को अधिक व्यापक में रूप में प्रभावित किया है ।
स्थापत्य कला चित्रकला मूर्तिकला तथा प्रायोगिक लोक कला इन सभी कला रूपों में
रामकथा की लोकप्रियता देखी जा सकती है। राम कथा लोकनाट्य की रंगमंचीय प्रस्तुति
भारत के हिंदी भाषीक प्रदेशों में अधिकतर देखने को मिलती है । रामलीला के
मंचन-प्रदर्शन का मुख्य क्षेत्र उत्तर प्रदेश और बिहार है किंतु अंतर्वस्तु और
नाट्य-शिल्प के कुछ अंतर के साथ यह राजस्थान, मध्यप्रदेश, कुमाऊं आदि क्षेत्रों में भी प्रस्तुत होती है । वाल्मीकि रामायण, तुलसीदास कृत
रामचरितमानस इन ग्रंथों में वर्णित राम कथा पर आधारित रामलीला का एकमात्र स्त्रोत
रामकथा है। रामलीला की रंगमंचीय प्रस्तुति भारतीय संस्कार, धर्म-दर्शन, और
ज्ञान-विज्ञान का दर्शन कराती है।
2. रासलीला
कृष्णचरित्र का लीलागान रासलीला में होता है | रासलीला की रंगमंचीय प्रस्तुति
भारत के हिंदी भाषीक प्रदेशों में ख़ासकर ब्रजभूमि में होती है | भगवान श्री कृष्ण के अवतारी स्वरूप की विभिन्न लीला लीलाओं को पूजा भाव से
रासलीला में अभिव्यक्त किया जाता है। भगवान श्री कृष्ण के कुछ प्रख्यात घटनाक्रम
को गीत नृत्य नाटक के माध्यम से मंचित किया जाता है।
3.अंकिया नाट
अंकिया नाट आसाम का
धार्मिक एवं मंदिर आधारित लोक नाट्य है । असम के वैष्णव संत श्री शंकर देव इस नाटक
के प्रमुख प्रवर्तक है। अंकिया नाट के जरिए कृष्ण चरित्र को नाट्य के विकसित
अनुशासन में बांधकर प्रस्तुत करने का सर्वप्रथम प्रयत्न असम में हुआ। वैष्णव संत
शंकर देव द्वारा प्रवर्तित अंकिया नाट असम का एक धार्मिक लोकनाट्य ही नहीं है, अपितु इस की भूमि रामलीला तथा रासलीला जैसे धार्मिक नाट्य के रूपों से कहीं ज्यादा सामाजिक है। अपने
उद्भव काल में ही यह गुरु शंकर देव की समाज चिंता के अनुरूप तत्कालीन असमी समाज के
जागरण और पुनर्गठन से जुड़ा हुआ एक ऐसा क्रांतिकारी आंदोलन था जिसके मूल में असमी
जन के जागरण और विकास की चेतना मौजूद थी।
4. यात्रा
पश्चिम बंगाल तथा उड़ीसा
प्रांत में संगीत नृत्य नाट्य प्रधान जो लोकनाट्य की प्रचलित परंपरा है उसे यात्रा
या जत्रा कहा जाता है। यात्रा इस लोकनाट्य की परंपरा पश्चिम बंगाल तथा उड़ीसा
प्रांत में पहले से ही है किंतु वैष्णव
भक्त चैतन्य महाप्रभु इन्होंने यात्रा की लोक नाट्य परंपरा को 16 वीं शताब्दी में वैष्णव भक्ति और प्रेम के
प्रसार के लिए पुनर्गठित किया। यात्रा रंगमंच बंगाल के शक्ति पूजको के बीच भी
लोकप्रिय हुआ। चंडीमंगलयात्रा को बंगाल में आज भी बहुत लोकप्रियता प्राप्त है ।
पूर्वरंग और उतररंग में यात्रा लोकनाट्य की प्रस्तुति होती है |
5. कुड़ियाट्टम
कुड़ियाट्टम का जन्मदाता केरल के चेरवंश के सम्राट कुलशेखर वर्मन को माना जाता है
| केरल ने संस्कृत रंगमंच की कुछ रूढियों
को यथावत अंगीकार कर अपनी भाषाएवं लोकपरम्परा के संयोग से कुड़ियाट्टम को जन्म दिया
| मुटीयेट्टू, तियाट्टू, पुराट्टू, यात्रकलि इन लोकनाट्यों का कुड़ियाट्टम से पहले
केरल में प्रचलन था |
6. यक्षगान
यक्षगान यह कर्नाटक की लोकप्रिय लोकनाट्य परंपरा है जो लगभग 16 वी शताब्दी से
प्रचलित है | यक्षगान इस लोकनाट्य पर कन्नड़ साहित्य तथा
संगीत, चित्रकला और स्थापत्य का निर्विवाद रूप से प्रभाव देखने को मिलता है, इन सभी के संयोग से संगीत नृत्य और वेशभूषा तथा साज सवार कि अपनी
विशिष्ट पद्धति का आविष्कार एवं विकास यक्षगान में देखने को मिलता है।
7. भागवतमेल
यह धार्मिक परम्परा पर
आधारित भक्तीनाट्य कर्नाटक, तमिलनाडु, आन्ध्रप्रदेश इन राज्यों में प्रचलित है
जिसका आधार यक्षगान साहित्य ही है | भागवतमेल कर्नाटक, तमिलनाडु, आन्ध्रप्रदेश का राजनीतिक
सांस्कृतिक इतिहास परस्पर संबद्धता के साथ विकसित हुआ है |
8. माच
माच मध्यप्रदेश और
राजस्थान में प्रचलित नाट्य विधा है जिसकी लोकप्रियता तमाशा, भवाई या नौटंकी जैसे
लोकनाट्यों के रूपों से किसी मायने में कम नहीं है | माच शब्द सम्भवतः मंच या मचान
से बना है | रंगमंच कि विशेषता के कारण इस नाट्य को माच यह नाम पड़ा है क्योंकि
इसका रंगमंच इतना ऊँचा होता था की उसके निचे से पूरी बैलगाड़ी निकल सकती थी | माच
के मंच पर माचकरों द्वारा लिखी गयी धार्मिक, वीरगाथात्मक, सामजिक कथाएँ प्रस्तुत
की जाती है |
9. तमाशा
महाराष्ट्र का लोकप्रिय
लोकनाट्य तमाशा है | महाराष्ट्र के ग्रामीण इलाकों में यात्रा, जात्रा, उत्सव में
लोकरंजन का प्रमुख साधन है जिसकी प्रस्तुति रात भर होती | गन, गवलन, बतावनी लावणी,
कटाव, शिलकार, वग यह तमाशा के प्रस्तुति के मुख्य अंग है | सामाजिक, धार्मिक,
कथानकों की प्रस्तुति तमाशा के वग में होती है |
इसके अलावा और भी बहुत सारे लोकनाट्य है जो
भारतीय ग्रामजनों के मनोरंजन का प्रमुख साधन है | अपनी प्रादेशिक, सांस्कृतिक,
विशिष्टता के कारण यह सभी लोकनाट्य अपनी सांस्कृतिक विरासत को संभाले हुए
प्रादेशिक गरिमा बढ़ा रहे है | इनके बारे में हम आगे और भी जानेंगे |
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