सिद्दी धमाल नृत्य |
गुजरात के सिद्दी जनसमुदाय द्वारा उनके आराध्य बाबा गौर की आराधना में किया जाने वाला नृत्य ‘सिद्दी धमाल नृत्य’ के नाम से जाना जाता है इसे सिद्दी गोमा भी कहा जाता है | यह एक सामुहिक लोकनृत्य है |
सिद्दी कौन है ?
सिद्दी जिन्हें सिध्दी, हब्शी, शीदी ऐसा भी कहा जाता है | लगभग ३०० से ४००
वर्ष पूर्व सिद्दी जनजाति के लोग गुजरात प्रान्त में आकार बसे सिद्दी जनजाति के
पूर्वज पहले तो 10 वी शताब्दी में आफ्रीकन व्यापारियों के जरिये गुलाम बनाकर आफ्रीका
से लाये गए उस कालीन बहुत सारे राजा महाराजाओं ने उन्हें अपनी सैन्य की ताकद बढाने
के लिए अपने सैन्यबल में जगा दे दी, कुछ लोंग खेतों में मजदुर बनकर काम करने लगे,
कुछ लोंग वन क्षेत्रों में बस गये, जो लोंग सैन्य में अधिकारी कार्यकर्ता के रूप
में उभरकर आये थे उन्होंने आगे चलकर महाराष्ट्र के जंजिरा, जाफराबाद आदि प्रान्तों
में अपनी भूमि का चयन कर लिया मराठा- मुगल संघर्ष में इनका संदर्भ देखने को मिलता
है | इस सभी घटनाओं से सिद्दी जनजाति के बारे में ऐतिहासिक पार्श्वभूमी देखने को
मिलती है | इसके बाद हम आते है वापस लोकनृत्य की ओर इन्होने अपनी नृत्य की परंपरा
अपने पूर्वजो से ही संभालकर रखी है उनके पूर्वज जब सफल शिकार कर के आते थे तब उसका
आनंद नृत्य के माध्यम से प्रस्तुत होता था अब ये नृत्य अपने पुर्वजों के पूजा विधी
में प्रस्तुत होता है| वैसे तो सिद्दी जनजाति अलग प्रान्त में विविध कारणों से
बटने के कारन कुछ सिद्दी सूफी मुसलमान, कुछ हिन्दू और कुछ कथोलिक है | बाबा गौर यह
सूफी संत है उनकी आराधना में सिद्दी सूफी मुसलमान इनके द्वारा यह नृत्य प्रस्तुत
होता है |
सिद्दी धमाल नृत्य की वेशभूषा और रंगभूषा
सिद्दी नृत्य करने से पहले
अपने चेहरे पर सफ़ेद रंग से रेखांये या रेखा चित्र बनाते है | मयूर पंख से बना
मुकुट वह सिर पर धारण करते है और मयूर पंख का बेल्ट कमर पर बाँधते है |
सिद्दी धमाल नृत्य में प्रयुक्त होने वाले वाद्य यंत्र
सिद्दी धमाल नृत्य में मुगरमान, ढोल, ताशा, मलुंगा, मायानमिश्रा आदि
लोकवाद्यों का इस्तेमाल होता है | उसमें से कुछ प्रमुख वाद्योंका वर्णन-
- मुगरमान- यह एक बड़ा खड़े रखकर बजाये जाना ढोल है जो सिद्दी के पूर्वज भारत में आफ्रिका से लेकर आए थे | ऐसे ढोल हमे अफ्रीकन लोकसंगीत में देखने को मिलते है|
- मलुंगा- यह एक तंतुवाद्य है जो धनुष्य के आकार का होता है और उसे लकड़ी के साईट पर दो आधे कदू लगे होते है | इस पर लगे तंतु पर हलकी लकड़ी से हलके से मारा जाता है जिस कारन इससे ध्वनि उत्पन्न होती है |
- मायानमिश्रा- यह वाद्य दो नारियल सुखाकर उसमे छोटे पत्थर या कुछ ऐसी चीज डालते है जो उन नारियल को हिला ने से उससे ध्वनि उत्पन हो सके| बेन्जो पार्टी में हम लकड़ी की मुठ वाला गोलाकार झुनझुना बजाते हुए देखते है तो बस उसका ही आद्य रूप मायानमिश्रा यह वाद्य है |
शिक्षण, प्रशिक्षण, कार्यक्रम
सिद्दी धमाल नृत्य तो एक पारंपरिक नृत्य है जो उनके एक पीढ़ी से अगली पीढ़ी
तक निर्वहन परम्परासे ही होता आ रहा है | भारत सरकार की सांस्कृतिक मंत्रालय के जो
अलग अलग सात सांस्कृतिक झोन है उसमे पच्छिम क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र उदयपुर है, दक्षिण मध्य सांस्कृतिककेंद्र नागपुर है, ऐसे अलग झोन के माध्यम से इस नृत्य की राष्ट्रीय आंतराष्ट्रीय स्तर पर प्रस्तुती होती है|भारत सरकार द्वारा स्थापित सात झोन के माध्यम से अपने देश की आदिम कला एव लोककलाओंके सृजनात्मक विकास एवं सुविधाए प्रदान करने के लिए कार्यरत है | सभी झोन के माध्यम से राष्ट्रीय लोकनृत्य कार्यशाला का आयोजन होता है उसमे हम इसके
बारे और जानकारी ले सकते है |
सिद्दी जनजाति के पूर्वज भारत में आये उन्होंने भारतीय संस्कृति और सभ्यता
का स्वीकार कर लिया और अपने पूर्वजों की लोकनृत्य परंपरा को संभाला आज वही परंपरा
अपनी एक अलग रंग छटा से भारतीय लोकरंग में घुल मिल गयी है और अपनी प्रस्तुति दे
रही है |
उपर दी गयी जानकारी आपको अच्छी लगी तो आपकी प्रतिक्रिया की अपेक्षा रहेगी|
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