महाराष्ट्र का एक लोकप्रिय लोक वाद्य - ढोलकी | A popular folk instrument of Maharashtra - Dholki

                             लोकसंगीत को भाषा की सीमा नहीं होती चाहे वो कौनसे भी राज्य का हो जब तमाशा  में ढोलकी, नौटंकी में नक्कारा, फाग में ढोलक और कहारों में हुडुक बजती है तब इसको सुनने वाला हर कोई इन्सान इसकी ताल पर झूम उठता है भले वो कौनसे भी प्रान्त का हो | महाराष्ट्र के लोकसंगीत का प्राण कहनेवाली  ढोलकी महाराष्ट्र का एक लोकप्रिय लोक वाद्य है।
यह वाद्य महाराष्ट्र के कई लोक कलाओं जैसे तमाशा, पोवाड़ा, लावणी, खडीग़मत, शक्ति तुरा में बजाया जाता है। ढोलकी के अंग एक पेड़ के तने से बनाए गए हैं। ढोलकी के लिए खैर, शीशम, बबूल, चिंच, आदि की लकड़ी आमतौर
dholki folk instruments of maharashtra
ढोलकी | Dholki

 पर इस्तेमाल की जाती है। इन लकड़ियों का उपयोग करने का कारण उपरोक्त पेड़ों की लकड़ी में पाए जाने वाले तंतुओं की समरूपता या चिपचिपाहट है। यह संपत्ति ऊपर के पेड़ों की लकड़ी में अधिक पाई जाती है। शीशम की ढोलकी, उंचे के स्वर के लिए अनुकूल है। एक ढोलकी की न्यूनतम ऊंचाई आमतौर पर बीस इंच होती है। ढोलकी के दो मुंह होते हैं, बाया और चाटी। चाटी को दाया भी कहा जाता है और बाया को धुमा भी कहा जाता है। चाटी की साइज़ कम से कम सव्वा पांच इंच और बाया की साइज़ कम से कम  सव्वा आठ इंच होती है | ढोलकी की जो चाटी की बाजु होती उसे तबले जैसी श्याही लगी होती है और बाया की बाजु के चमड़े को अंदर की तरफ़ से मेनी लगी होती है जिसे मसाला  भी कहा जाता है मसाला याने तेलयुक्त चिकनी मिट्टी होती है |   ढोलकी के दोनों बाजु के चमड़े पहले सूत की रस्सी से एक दुसरे से जुड़े रहते थे अब इसमे परिवर्तन आ गया है और अब ये स्क्रू की सहायता से बिठाये जाते है | लावणी नृत्य में रंग भरने का काम ढोलकी करती है , क्योंकि गीत, नृत्य और वाद्य इनके संयोग को ही संगीत कहा गया है |


 जिसमे ढोलकी बजाई जाती है वो लोकसंगीत, लोककला प्रकार :-


  1.  तमाशा- तमाशा यह महाराष्ट्र का मनोरंजन एवं प्रबोधनपर लोकनाट्य है इसमे ढोलकी यह प्रमुख वाद्य है| तमाशा जब शुरू होता है तब हलगी और ढोलकी की जुगलबंदी शुरू होती है उसे मोहरा कहते है ये जुगलबंदी देखने लायक होती है |पच्छिम महाराष्ट्र के गाव कसबों के यात्रा उत्सवो में तमाशा लोकनाट्य प्रस्तुत होता है |   
  2. पोवाड़ा- पोवाडा यह वीरश्रीयुक्त ऐतिहासिक और सामाजिक घटनाओं का वर्णन करने वाला लोककथा गीत गायन प्रकार है उसमे ढोलकी बजायी जाती है|
  3. लावणी- वैसे देखा जाये तो लावणी यह तमाशा इस लोकनाट्य का ही एक भाग है लेकिन लावणी लोकनृत्य तमाशा के अलावा अलग से भी प्रस्तुत होता है | तमाशा लोकनाट्य के ढोलकी फड और संगीतबारी ऐसे दो प्रकार है| संगीतबारी में नृत्यप्रधानता होती है और ढोलकी फड तमाशा में नृत्य और नाट्य इन दोनों का प्रभाव होता है | लावणी को सजाने का काम ढोलकी ही करती है| तमाशा या लावणी के प्रस्तुतिकरण में मुजरा यह लावणीनृत्य का एक अलग पदलालित्य है उसमे प्रेक्षक, रंगमंच और ईश्वर इनको मुजरा याने वंदन किया जाता है | मुजरा नृत्य में ढोलकी और नृत्यांगनाओं का पदलालित्य इनका एक अलग मिलाफ देखने को मिलता है ढोलकी की ताल और घुंगरू की यह झंकार से उसे देखने वाला हर कोई उसपर झुमने लगता है | 
  4. खडीग़मत:- खडीग़मत यह महाराष्ट्र के विदर्भ प्रान्त का मनोरंजनात्मक लोकनाट्य प्रकार है इसमे भी  ढोलकी यह प्रमुख वाद्य है | इस लोकनाट्य में सभी पुरुष कलाकार होते है स्त्री भूमिका भी पुरुष ही निभाते है |
  5. शक्ति तुरा:- महाराष्ट्र के अलावा कर्णाटक, राजस्थान आदि राज्यों में कलंगी-तुरा यह लोकसंगीत की परंपरा सदियों से चली आ रही है जिसमे शिव का और शक्ति का महत्व वर्णन करने वाले दो पक्ष होते है शिव के पक्ष वाले तुरेवाले और शक्ति के पक्ष वाले कलंगीवाले के नाम से जाने जाते है | इसमे होने वाले सवाल जवाब अध्यात्मिक होते है जो पुराणकथा और पुराणग्रंथो पर आधारित होते है | शक्ति तुरा की यह परंपरा महाराष्ट्र के कोंकण प्रान्त में देखने को मिलती है जिसमे ढोलकी यह प्रमुख वाद्य होता है |                                                   इन सब प्रमुख लोककला प्रकारोंके अलावा जहां लोकसंगीत की रंगमंचीय प्रस्तुति होती है वहा ढोलकी बजायी जाती है | कई सारे मराठी हिंदी फिल्मों के गानों में ढोलकी ने अपनी मिठास भर दी है |   

ढोलकी महाराष्ट्र के लोकसंगीत का प्राण:-

          ढोलकी की एक अलग विशेषत: मै आपको बताऊंगा, ढोलकी पर जब ता ता ता ता की थाप पड़ती है तब इसकी पहली थाप को ही प्रेक्षकगन झूम उठते है अपने आप सीटियाँ और तालियों की बौछार होने लगती है | ढोलकी वाद्य की इतनी लोकप्रियता के कारण ढोलकी को महराष्ट्र के लोकसंगीत का प्राण कहाँ जाता है | ढोलकी के नाम से जाने वाला वाद्य पंजाब और पाकिस्तान के कुछ इलाकों में बजाया जाता है लेकिन वह ढोलकी ढोलक का एक छोटा प्रारूप है, ढोलक को ही उस प्रान्त में ढोलकी के नाम से पुकारा जाता है  जो वहाँ के शादी के लोकगीतों में बजाया जाता है | महाराष्ट्र की ढोलकी इस ढोलकी से अलग है |                                                      

महाराष्ट्र के कुछ जाने मानें ढोलकी वादक:-

                    लालाभाऊ गंगावने, बबन काले, पंडित विधाते, यासीन महाम्ब्री, पांडुरंग घोटकर, शंकर घोटकर, राजू जामसान्देकर, विजय चौहान, कृष्णा मुसले, निलेश परब आदि |  निचे मैंने yutube का लिंक दिया है उसमे जाने माने ढोलकी वादक पांडुरंग जी घोटकर इनका ढोलकी वादन है|  
                           

 जिसमे ढोलकी बजाई  है वो कुछ पुराने गाने :- 

            
                          बॉलीवुड के कई सारे फ़िल्मी गीतों को सजाने का काम ढोलकी इस वाद्य ने किया है | आपके जानकारी के लिए मै बताना चाहूँगा की जिन पुरानीं फ़िल्मी गीतों में ढोलकी बजायी गयी है, उन कुछ गीतों का उदाहरण मै आपको बताऊंगा ओ आप जरूर सुनिए, अभी तो बहुत सारे गानों में ढोलकी  बजायी जाती है लेकिन ओ पुराने गाने यादगार है ओ कुछ इस प्रकार-
  1. मेरे मन का बांवरा पंछी   
  2. घर आया मेरा परदेसी 
  3. अपलम चपलम
  4.  राधा ना बोले ना बोले रे           
इसे भी पढ़े→1. दिमडी- महाराष्ट्र का लोकवाद्य
                    2. जानिए महाराष्ट्र के तंतुवाद्यों के बारे में
                    ३. ढोलकी मराठी माहिती

उपर दी गयी जानकारी अगर आपको अच्छी लगी तो आपकी प्रतिक्रिया की अपेक्षा रहें गी |



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