लोकगीत क्या है ? लोकगीत किसे कहते हैं ? लोकगीत कितने प्रकार के होते हैं ?

 

लोकगीत क्या है ?   

सृष्टि के आदिकाल से ही सामाजिक चेतना के साथ लोकगीत का उदय हुआ जिसका संबंध लोक जीवन से था। शून्य से ध्वनि की निर्मिति हुई ध्वनि से अक्षरों का नाद निर्माण हुआ और अक्षरों से शब्दों ने आकार लेकर एक अलग ही रूप प्रकट किया और मनुष्य ने अपने सहजस्फूर्त भावनाओं का अविष्कार करते हुए लोकगीत को जन्म दिया। भारत में लोकगीतों की परम्परा उतनी पुरानी है जितनी भारतीय संस्कृति |

 

लोकगीत क्या है ? लोकगीत किसे कहते हैं ?

लोकगीत किसे कहते हैं ? What is the meaning of folk song? यह जानने के लिये लोकगीत की परिभाषाएं जानना जरुरी होगा 

लोक साहित्य के विद्वानों ने लोकगीत की परिभाषा कुछ इस प्रकार की है।

  1. पंडित द्विवेदी - आदिमानव की कंठ से जो भाव निकलते थे वह गीत बन गए
  2. सरोजिनी बाबर - सामान्य मनुष्य के सामूहिक लोकजीवन की अभिव्यक्ति लोकगीत होते हैं।
  3. डॉ. सत्येंद्र- जिस लोकगीतों से लोक मानस की अभिव्यक्ति होती है उसे लोकगीत कहा जाता है।
  4. डॉ श्याम परमार- गीतों में विज्ञान की तराश नहीं, मानव संस्कृति का सारल्य और व्यापक भावों का उभार है। भावों की लड़ियां लंबे लंबे खेतों-सी स्वच्छ, पेड़ों की नंगी डालो सी अनगढ़ और मिट्टी की भांति सत्य है।
  5. देवेंद्र सत्यार्थी- कहां से आते हैं इतने गीत ? स्मरण-विस्मरण की आंख मिचौनी से । कुछ अट्टहास से । कुछ उदास हृदय से । कहां से आते हैं इतने गीत ? जीवन के खेत में उगते हैं, यह सब गीत। कल्पना भी अपना काम करती है, रसवृत्ति और भावना भी, नृत्य का हिलोरा भी-पर यह सब है खाद। जीवन के सुख, जीवन के दुःख, यह है लोकगीत के बीज।
  6. डॉ. सूर्यकान्त पारिक – आदिम मानव हृदय के गानों का नाम लोक-गीत है | मानव-जीवन की उसके उल्लास की, उमंगों की, उसकी करुणा की, उसके रुदन की, उसके समस्त सुख-दुःख की.. कहानी इसमे चित्रित है |

 

लोक-गीतों की विशेषताएं Characteristics of folk songs

लोकगीतों की विशेषताएं संबंधी अनेक विद्वानों ने प्रकाश डाला है वह कुछ इस प्रकार है

  1. लोकगीत यह किसी व्यक्ति की रचना नहीं बल्कि समूह की रचना होती है
  2. लोकगीतों में मौखिक परंपरा होती है ।
  3. लोकगीतों में लय ताल के तत्व होते हैं।
  4. अकृतिमता, सहजता, स्वयंस्फूर्त तथा संगीतमयता इन सबका एकत्रित आविष्कार लोकगीतों में होता है।
  5. लोकगीत ज्यादातर लोक भाषा में ही होते हैं।
  6. मनोरंजन एवं ज्ञानवर्धन यह लोकगीत की विशेषता है।
  7. लोकगीतों में सामूहिक भावना होती है।
  8.  स्त्रियों के लोकगीत, पुरुषों के लोकगीत, तथा सामूहिक लोकगीत ऐसा लोकगीतों का प्रचलन होता है।
  9. लोकगीतों में पुनरावृत्ति होती है।
  10. लोक-परंपरा, लोकसंस्कृति, लोकसंस्कार, व्रत, पूजा आदि के साथ लोकगीतों का गहन संबंध रहता है।

 

लोकगीत का स्वरूप

लोकगीत एक समूह द्वारा रचित गीत है। यह गीत लोक जीवन का गीत है और लोगों के बीच लोकप्रिय है। फिर भी, लोकगीतों का स्वरूप विविध है। मानव जीवन का कोई भी पहलू ऐसा नहीं है जो लोकगीतों में प्रतिबिम्बित न हो। इस अर्थ में लोकगीतों को लोकसाहित्य की आत्मा माना जाता है।

सर अलेक्जेंडर क्रैप ने अपनी पुस्तक 'द साइंस ऑफ फोकलोर' में लोकगीतों का मौलिक विश्लेषण किया है। लोकगीतों की प्रकृति को समझाते हुए वे कहते हैं, “लोक-कथा एक गीत है। माधुर्य से युक्त एक गीतात्मक काव्य, जो गुमनाम रूप से, अतीत में अशिक्षित लोगों के बीच उत्पन्न हुआ था और जो काफी समय तक, आमतौर पर सदियों तक, प्रचलन में रहा।

लोकगीत प्रादेशिक समुदाय की बोली में होते हैं। समूह निष्ठा लोकगीतों की एक विशेष विशेषता है। कुछ लोकगीत गंभीर विषय-वस्तु से भरे होते हैं। कुछ लोकगीतों में सूक्ष्म बारीकिया होती है।

लोकगीत कितने प्रकार के होते हैं ? लोकगीतों का वर्गीकरण How many types of folk songs are there? Classification of folk songs

लोकसाहित्य के विद्वानों द्वारा व्यक्त विचारों के अनुसार लोकगीतों को निम्नलिखित प्रकार से वर्गीकृत किया जा सकता है |

  1. महिलाओं के गीत
  2. पुरुषों के गीत
  3. बच्चों के गीत
  4.  उपासना गीत
  5.  प्रादेशिक गीत
  6.  जातिगीत
  7. आदिम जन जाती गीत
  8.    श्रम गीत
  9.  त्यौहार के गीत
  10.  संस्कार गीत

ऊपर दिए गए प्रकारों के अतिरिक्त, विद्वानों ने अपने अध्ययन के माध्यम से कई अन्य प्रकार प्रस्तावित किए हैं। उपरोक्त प्रकार के लोकगीतों में कुछ उपप्रकार भी शामिल हैं, जैसे चक्की पीसते समय के गीत, झुला झुलाते समय के गीत, त्योहारों के गीत आदि। पूर्व से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण तक फैले विशाल एवं समृद्ध भारत में गाए जाने वाले लोक गीत केवल गीत नहीं, बल्कि मानव जीवन का सार उसमे हैं।

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