भारतीय लोककथाओं की परंपरा

भारतीय लोककथाओं की परंपरा


        हमारे भारत देश को लोककथाओं की जन्मभूमी माना गया है | सभी लोककथाओंका मूलस्रोत सुर्यकथाएँ है और ये सभी देशों में एव सभी भाषाओं में देखने को मिलती है | भारतीय लोककथाओं की परम्परा का उगम वैदिक संहिताओं में देखने को मिलता है, ॠग्वेद के संवादसूक्त आख्यान स्वरुप है इसलिए इसके बाद सभी उपनिषदकारोंने इसी आख्यान परंपरा का स्वीकार किया और इसी परंपरा का उपनिषद पुराणग्रंथो में संकलन हुआ | अगर देखा जाये तो लोककथाएँ इतनी पुरातन है की उसकी शुरुवात कब हुई यह कोई नही बता सकता लेकिन लिखित साहित्य वैदिक काल से उपलब्ध होता है इसलिए वैदिक काल से लिखित साहित्य के आधार पर हम भारतीय लोककथाओं की परंपरा जानने का प्रयास करेंगे |


लोककथाओं का भण्डार

      हमारे पुरे भारतवर्ष में लोककथाओं का भण्डार है, हर एक कथा से हमें प्रेरणा मिलती है, कुछ ना कुछ सिख मिलती है| इन सभी लोककथा-भण्डार के रत्न कौनसे है और इन की हमारी सामाजिक जीवन व्यवहार में बहुत बड़ी उपलब्धी है वो क्या है? इसे हम विस्तार पूर्वक आगे देखेंगे |

  1. पुराणग्रंथ :


          रामायण, महाभारत हमारे लोककथाओं के भण्डार के अनमोल रत्न है, रामायण, महाभारत आदि सभी धर्मग्रंथ मनुष्यों के लिए प्रेरणादायक है | सभी धर्मग्रंथो से हर व्यक्ति की धार्मिक आस्था, श्रद्धा जुड़ी हुयी है | सभी धर्म ग्रंथो में बताए धर्म संकेतों का पालन करके अपना संसारिक जीवन व्यतीत करना ये हर मनुष्य का उद्देश है| वैसे तो सभी धर्मग्रंथ लिखित है लेकिन जब कोई व्यक्ति अपनी अलग कथाकथन शैली से उसे प्रस्तुत करता है तो वो लोककथा का रूप धारण कर लेती है | इन धार्मिक पुराण ग्रंथोंपर आधारित हमारे देश में कथाकथन की बहुत प्राचीन परंपरा है सूत-भाट, चारण, भागवतकथाकार, कीर्तन, ग्रामीणकथाकथन की परंपरा प्राचीनकाल से चली आ रही है| हमारे बहुत सारे लोकनाट्य, लोककथा गायन शैली पुराण ग्रंथोंपर आधारित होती है जिसकी कोई लिखित संहिता नहीं होती लेकिन उनकी प्रस्तुती का आधार यही पुराण कथाएँ होती है, जो परम्परागत रूप से एक दुसरे से मुखरित होकर संक्रमित होकर चली आ रही है | कहानी सुनना और बताना यह मानवी प्रवृत्ती तो प्राचीन काल से है, हमने भी अपनी दादी, नानी से रामायण, महाभारत से जुड़ी कहनियाँ तो जरुर सुनी होगी क्योंकि इन्ही कहानियों ने हमारा अध्यात्मिक, सामाजिक, संसारिक जीवन को सफलता प्रदान की है | 

2. बृहत्कथा :

      रामायण, महाभारत आदि पुराण कथाओं के बाद बृहत्कथाओं का भारतीय लोककथाओं में बहुत बड़ा प्रभाव है | बृहत्कथा के निर्माता वररुचि है, इनके अनेक कथाओंका संकलन बृहत्कथा ग्रंथ में है, मूल बृहत्कथा वररुचि इन्होंने काणभूति से कही और काणभूति ने गुणाढ्य से गुणाढ्य इन्होने पैशाची भाषा(प्राचीन काल में भारत के पच्छिमोत्तर प्रदेश में बोली जाने वाली भाषा) में काव्य स्वरुप इन कथाओं को प्रस्तुत किया जिसे बड्डकहा कहते है| बृहत्कथा याने लम्बी कथा इसका मूल रूप और गुणाढ्यकृत बड्डकहा का भी मूल रूप तो अभी उपलब्ध नहीं है किन्तु इन कथाओं के अनेक संस्कृत संस्करण हुए जो कथासरित्सागर, बृहत्कथामंजिरी, बृहत्कथाश्लोकसंग्रह इन ग्रंथो में विद्यमान है | कथासरित्सागर इस कथा ग्रंथ का निर्माण सोमदेव भट्टराव ने किया जो बृहत्कथा ग्रंथ का सार संस्कृत में लिखित किया है | बृहत्कथा का संस्कृत रूपांतर बृहत्कथाश्लोकसंग्रह इस ग्रंथ में भी हुआ जो बुधस्वामी इन्होंने रूपांतरित किया है | बृहत्कथा का और एक रूपांतर बृहत्कथामंजिरी नाम से है जिसके रचियता क्षेमेन्द्र है जिन्होंने इसे रोचक और संक्षेप में प्रस्तुत किया है | भारतीय लोककथाओं की परंपरा के इस दस्तावेज़ में तांत्रिक अनुष्ठान, प्राणिकथा, दिव्य योनी, यक्ष, गंधर्व आदि संबधी ढेरों सारी कथाएँ और मनुष्य की धार्मिक आस्था, श्रद्धा से जुड़ी कथाएँ है | 

3. पंचतंत्र :

      पंचतंत्र के रचियता पं. विष्णु शर्मा है, लगभग 87 कथाओंका इस ग्रंथ मे संकलन किया है | इन कहानियों में मनुष्य पात्रों के अलावा प्राणियों के भी पात्र है जिनके द्वारा नीतिशास्त्र की क्षिशाप्रद, उपदेशपर बातें कहलवाने की कोशिश की है| पंचतंत्र की कहानियों को पांच भागों में बाटा है मित्रभेद, मित्रसंप्राप्ती, काकोलुकीयम, लब्धप्रणाश, अपरिक्षित कारक इन पांच प्रमुख भागों के अलावा इसके  सम्बंधित उपकथाएँ है | पंचतंत्र के श्रोता तीन राजकुमार है जो शास्त्रविमुख और विवेकरहित है उनको धर्म, नीतिशास्त्र, व्यावहारिक जीवन इन सभी गुणों का परिचय तथा अवगत करवाने के लिए राजा की इच्छा से पं. विष्णु शर्मा द्वारा पंचतंत्र का निर्माण हुआ | ये कहानियाँ मनुष्य के लिए शिक्षाप्रद है नैतिकता, सदाचार, सामाजिक जीवनव्यवहार, नितिमुल्य इन सभी का गुणदर्शन प्रस्तुत कथाओं में से होता है | ‘हितोपदेश’ इस कथाओं में भी पंचतंत्र की अनेक कहानियाँ अंतर्भूत है जिसका मूल हेतु मानव को नीतिबोध से अवगत करवाना है |

4.बेताल पंचविंशति/ पच्चीसी :

      राजा विक्रमादित्य और बेताल इनकी कूट प्रश्नों पर आधारित कहनिया विक्रम-बेताल के नाम से सर्वपरिचित है इसका दृश्य रूप प्रसारण दूरदर्शन पर भी हुआ है| बेताल के कूट-प्रश्न का उत्तर विक्रम अपने न्याय-शक्ति, व्यवहारचातुर्य और कुशलबुध्दी से कैसे देते है ऐसा संवाद रूप इन कहनियों में है | बेताल पंचविंशति की हर एक कथा में राजा विक्रमादित्य का चातुर्य और व्यवहारिक बुद्धिचातुर्य इसका परिचय देखने को मिलता है | इन कथाओं के रचियता बेताल भट्टराव थे जो राजा विक्रमादित्य के नौ रत्नों में से एक थे | इन कहनियों का हेतु केवल मनोरंजन एव दिल बेहलाना नही है बल्कि अच्छा-बुरा, सही-ग़लत, क्या है इसका निर्णय हम ले सके और न्याय, बुद्धिचातुर्य, व्यावहारिक कुशलता, नेतृत्व गुण इन सभी गुणविशेषताओं का दर्शन मानवी जीवन व्यवहार के लिए उपयुक्त है |


5. सिंहासन बत्तीसी:   

      सिंहासन बत्तीसी यह हिंदी लोककथा संग्रह सिंहासनद्वात्रिंशति इस संस्कृत कथाओंका रूपांतरण है जिसमे 32 कहानियाँ संकलित है | यह 32 कहानियाँ सिंहासन से सम्बंधित है जो 32 पुतलियों के द्वारा सुनाई गयी है | यह कहानियाँ बहुत ही रोचक और रंजक है, राजा विक्रमादित्य का गुणवर्णन 32 पुतलियों ने किया है | सिंहासनद्वात्रिंशति की रचना का श्रेय क्षेमेन्द्र मुनि को जाता है | SONY PAL इस चैनेल ने सिंहासन बत्तीसी की कथाओं पर आधारित धारावाहिक का निर्माण किया था जिसको आप youtube पर भी देख सकते है |

6. शुकसप्तती:

          शुक याने तोता और सप्तती का मतलब सत्तर, तोते ने अपनी स्वामिनी का चारित्र्यहनन होने से बचाने के लिए बोधपर सत्तर कहानियाँ सुनाई जो इस ‘शुकसप्तती’ कथासंग्रह में संकलित है | शुकसप्तती इस मूल संस्कृत कथासंग्रह का अनेक भाषाओं में रूपांतर हुआ है, सन 1911 में डॉ. बी. हेले वॉर्टहम इन्होने ‘शुकसप्तती’ का अंग्रेजी रूपांतर किया है जो ‘The Enchanted Parrot’ इस नाम से है | शुकसप्तती का ‘तूतीनामा’ यह फारसी रूपांतर भी देखने को मिलता है |     

7. जातककथा :

        जातक कथा याने भगवान गौतम बुद्ध के पूर्वजन्म की कथा, बौद्ध त्रिपिटक के दुसरे खंड में बुद्ध की बोधिसत्व अवस्था से सम्बंधित यह कथाएँ है | गौतम बुद्ध का पुरा जीवन ही नहीं बल्कि पिछला जन्म भी सभी मानव जाती के लिए प्रेरणादायक है, गौतम बुद्ध की पिछले जन्म से जुड़ी लगभग 550 कथाएँ जातक कथा है | पुरे विश्व को ‘अहिंसा परमो धर्म’ की राह पर चलने का संदेश देने वाली जातक कथाएँ भारतीय लोककथाओं की परंपरा का अनमोल रत्न है |

8.जैन-चूर्णी / जैनकथा :

       लौकिक आख्यानों का स्वरुप कायम रखते हुए जन-समाज को बोध, नीति का उपदेश देने का कार्य भगवान महावीर इन्होंने किया | इन कथाओं को जैन-चूर्णी, चूर्ण, चूर्णक, अवचूर्ण नाम से भी जाना जाता है | जैसे बौद्ध कथाओं को जातक कथा कहाँ जाता है ठीक वैसे ही जैन धर्म के नीतिबोध विषयक कथाओं को चूर्णी के नाम से चूर्णक कहाँ जाता है | नीतिमुल्य, धार्मिकता, कठोर संयमता, अनासक्ती आदि जीवन मूल्यों का दर्शन जैनकथाओं में होता है |

         लोककथाएँ क्यूँ सुनाई जाती है? लोककथाओं ने मानव का वैचारिक भरणपोषण कैसे किया है? अगर इसके बारे में और गहराईयों से जानने की कोशिश की जाये तो निच्छित ही उसका यह निष्कर्ष निकलता  है की, लोककथाओं ने नीतिशास्त्र, बुद्धिमता, व्यवहार चातुर्य इसके उदहारण देकर मानवी जीवन को सफलता का मार्ग दिखाया है | लोककथाओं ने अलग अलग धारणा, समज, देवता संकल्पना, अनुभूति, आदि संबधी जानकारी जन-मानस तक पहुचानेका कार्य किया है |

       यह जानकारी आपको अच्छी लगे तो आपके प्रतिक्रिया की अपेक्षा रहेगी | Folk Arts India आपको भारतीय लोककलाओं के बारे जानकारी देने के लिए सदैव प्रयत्नशील रहेगा |

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