महाराष्ट्र राज्य के घन वाद्य यंत्र | Idiophones instruments list - Maharashtra

 


वाद्य कौन सा भी हो चाहे वह किसी देश का, राज्य का अथवा  किसी क्षेत्र विशेष का वह वाद्य उस क्षेत्र की सांस्कृतिक, सामाजिक तथा भौगोलिक गतिविधि क्या है यह बताता है | दोस्तों लोक संगीत को भाषा या प्रांत की सीमा नहीं होती क्योंकि जब तमाशा में ढोलकी, फाग में ढोलक, नौटंकी में नगारा, भांगड़ा नृत्य में ढोल यह वाद्य जब बजने लगते हैं तब इसको सुनने वाला हर कोई इंसान इसकी धुन पर झूम उठता है | दोस्तों इस लेख के माध्यम से हम महाराष्ट्र के लोक संगीत में प्रयुक्त होने वाले घन वाद्य कौन से है? उनके नाम क्या है? और लोक संगीत में उनका प्रयोजन क्या है?  इसके बारे में जानकारी लेंगे |

महाराष्ट्र राज्य के घन वाद्यों का नाम  Idiophones instruments list - Maharashtra
Idiophones instruments of Maharashtra


घनवाद्य :- घनवाद्य को कंपीत शरीर वाद्य कहा जाता है | जिसे अंग्रेजी में Idiophones कहा जाता है | घनवाद्य याने ठोस वाद्य जिनसे निश्चित स्वर की उत्पत्ति नहीं होती तथा उनका उपयोग केवल गीत एवम् नृत्य में लय के लिए बाकी वाद्यों के साथ होता है| इसके कुछ उदाहरण हम देखते है |

Idiophones example  

1. लकड़ी डांडिया:- लगभग सभी भारतवर्ष में ऐसे कई सारे नृत्य प्रकार है जिसमें लकड़ी डंडे का इस्तमाल करते हुए नृत्य किया जाता है | इन सभी नृत्य में गुजरात का डांडिया नृत्य बहुत ही popular है महाराष्ट्र में भी लकडी डंडियों के सहारे नृत्य किए जाते हैं जिसमें  टिपरी नृत्य, काटखेल नृत्य  डंडार नृत्य यह नृत्य प्रकार प्रचलित है

2. घोळकाठी:- महाराष्ट्र में तारपा यह आदिवासी नृत्य परंपरा बहुत ही प्रचलित है | नृत्य में सबसे आगे नृत्य करने वाले नर्तक के हाथ में यह घोळकाठी होती है | काठी (लकडी का डडा) को ऊपर की तरफ फूल की पंखुड़ियों जैसे लोहे की पंखुड़ियां लगाई होती है | नृत्य करते वक्त यह नर्तक इस काठी को जमीन पर पटकते हुए नृत्य करता है | ऊपर लगे हुए लोहे की पंखुड़ियों के कारण ध्वनि निर्मित होता है |

3. सुरथाल:- महाराष्ट्र के पालघर नाशिक धुले इन जिलों में तथा इन जिलों के निकटतम गुजरात सीमा प्रांत के आदिवासी इलाकों में सुरथाल कथा गायन की परंपरा प्रचलित है | यह कथा गायन सुरथाल इस वाद्य पर आधारित होता है |

4. घुंगरू:- घुंगरू और नृत्य इनका बहुत ही गहरा संबंध है, फिर चाहे वह नृत्य लोक नृत्य हो या शास्त्रीय नृत्य हर प्रकार के नृत्य में घुंगरु का उपयोग होता है | अनेक प्रकार के लोकगीतों में घुंगरू का उपयोग लयवाद्य के रूप में होता है |

5. घुंगरकाठी:- 2 से 3 फुट स्टील के पाइप को दोनों तरफ घुंघरू लगाए होते हैं जिसे घुंगर काठी कहा जाता है | इस वाद्य का उपयोग महाराष्ट्र के भजन भक्ति संगीत मैं होता है |

6. मंजीरा:- मंजीरा यह वाद्य का प्रचलन लगभग पुरे भारतवर्ष में है | बहुत सारे लोकगीतों में मंजीरा का उपयोग होता है |

7. वारकरी टाळ:- महाराष्ट्र में वारकरी संप्रदाय के भजन कीर्तन में मंजीरा से बड़ा वाद्य बजाया जाता है जिसे वारकरी टाळ कहते हैं |

8. चकवा / झांज:- झांज यह वाद्य महाराष्ट्र के भक्ति संगीत में ही प्रयुक्त होता है ।  महाराष्ट्र के दशावतार इस भक्ति नाट्य में पखावज के साथ झांज को सुनना बहुत ही श्रवणीय  होता है|

9. खैताळ:- खैता यह घन वाद्य झांज से बड़ा होता है | यह वाद्य महाराष्ट्र के धनगरी नृत्य में ढोल और ताशा के साथ बजाया जाता है |

10. घाटी:- महाराष्ट्र के कुलदेवता खंडोबा इनकी आराधना में किया जाने वाला विधि नाट्य जिसे जागरण कहते हैं | इस जागरण विधि नाट्य में घाटी यह वाद्य खंडोबा की आराधना करने वाली मुरली इस स्त्री कलाकार द्वारा बजाया जाता है | घाटी यह वाद्य दो घंटियों की जोड़ी है यह दो घंटी कपड़े लपेटे हुए अंग्रेजी के U आकार में एक दूसरे से जुड़ी होती है |

11. डोनावाद्य:- यह वाद्य महाराष्ट्र के कोंकण प्रांत में स्त्रियों के खेल गीतों में बजाया जाता है | यह एक लकड़ी का खोखा होता है जो आयत के आकार का होता है | इस लकड़ी के बॉक्स पर दो लकड़ियां पकड़कर रगड़ ते हुए गीत गाते हैं | यह गीत प्रकार इस डोनावाद्य पर आधारित है|

13. लेझीम:- महाराष्ट्र राज्य में ढोल लेझीम यह नृत्य प्रकार बहुत ही प्रचलित है | इस नृत्य प्रकार में लेझीम यह वाद्य नर्तक अपने हाथ में लेते हुए नृत्य करते हैं | लगभग 2 फुट लकड़ी डंडे को लोहे की कड़ी में धातु की गोल छोटी रिंग (clappers) लगाई जाती है जो नृत्य करते समय खींचने से ध्वनि उत्पन्न करती है |

14. थाली:- पीतल धातु की गोल थाली इस वाद्य का उपयोग तूरथाल इस आदिवासी नृत्य में तूर ढोल के साथ होता है |

15. त्रिकोणी लोहे की कड़ी:- जिसे अंग्रेजी में TRIANGLE  कहा जाता है | अनेक लोकगीतों में तथा लोक वाद्यों के सिंफनी में इस त्रिकोणी धातु की कड़ी का प्रयोग होता है |

16. धातु का गोल कड़ा :- जिसे अंग्रेजी में GONG कहा जाता है | इस वाद्य का प्रचलन महाराष्ट्र के ढोल ताशा पथकों में देखने को मिलता है |

17. घंटी / घंटा:- इस वाद्य का प्रचलन पुरे भारत वर्ष में है | मंदिरों में एवं घरों में पूजा के लिए तथा आरती के लिए यह वाद्य बजाया जाता है |

              यह कुछ महाराष्ट्र के लोक संगीत में प्रचलित घन वाद्यों के उदाहरण है | जिसमें बहुत सारे वाद्य लगभग सभी भारतवर्ष में पाए जाते हैं, तथा कुछ वाद्य महाराष्ट्र के क्षेत्र विशेष है | यह जानकारी आपको अच्छी लगे तो हमें COMMENT BOX में जरूर लिखना |



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